मंगलवार, अक्टूबर 8, 2024
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राहुल गांधी और ओबीसी राजनीति, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस उबर नहीं पाई

राहुल गांधी को मानहानि केस में दोषी ठहराते हुए संसद से अयोग्य घोषित कर दिया गया है. अब बीजेपी ने ओबीसी के कथित अपमान को लेकर राहुल गांधी के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने की घोषणा की है. कांग्रेस ओबीसी अपमान के इल्जाम को खारिज कर रही है.

जहां तक ओबीसी का सवाल है, हिन्दी भाषी राज्यों में आजादी के पहले से ही इनका कांग्रेस से अच्छा रिश्ता नहीं रहा. इतिहास इस बात का भी गवाह रहा है कि पार्टी ने इन जातियों तक पहुंचने के कई अवसर गंवाए हैं. कांग्रेस आजादी के तुरंत बाद से ओबीसी के सवाल से जूझ रही है. आइये इतिहास के चश्में से समझने की कोशिश करते हैं कि कांग्रेस पार्टी ने कितने मौकों पर ओबीसी तक पहुंच के मौके गंवाए.

पिछड़े वर्गों अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए कोटा की तर्ज पर आरक्षण की मांग आजादी के तुंरत बाद ही शुरू हुई. जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने 1953 में राज्यसभा सदस्य काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहला पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की. काका साहिब कालेलकर जी ने 29 जनवरी सन 1953 को पिछड़े वर्ग आयोग की शुरुआत की थी. जिसे काका कालेलकर कमीशन के नाम से जाना जाता था.

बता दें कि उस समय ‘ओबीसी’ शब्द व्यापक रूप से इस्तेमाल नहीं किया जाता था. आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की लेकिन उस पर कोई खास काम नहीं किया गया. धीरे-धीरे, हिंदी पट्टी के ओबीसी समुदाय के लोग समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया की तरफ आकर्षित हुए. 1967 में 57 वर्ष की आयु में लोहिया के असामयिक निधन के बाद पश्चिमी यूपी के जाट नेता चौधरी चरण सिंह ओबीसी के नेता के रूप में उभरे. अक्टूबर 1975 में कांग्रेस पार्टी के हेमवती नंदन बहुगुणा ने छेदी लाल की अध्यक्षता में अति पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया. ये प्रदेश में ओबीसी कोटा के लिए पहला प्रयास था. हेमवती नंदन बहुगुणा नवंबर 1973 और नवंबर 1975 के बीच उत्तर प्रदेश के कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे.उन्हें कांग्रेस का चाणक्य भी कहा जाता था.

अप्रैल 1977 में कांग्रेस के दिग्गज नेता एनडी तिवारी की सरकार ने उत्तर प्रदेश में ओबीसी के लिए सरकारी नौकरियों में 15 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की, जो देश में इस तरह का पहला कदम था. मार्च 1977 के आपातकाल के बाद के चुनावों के बाद केंद्र में सत्ता में आई प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार ने तिवारी की सरकार को बर्खास्त कर दिया. नतीजतन, राम नरेश यादव (1977-79) के नेतृत्व वाली यूपी की जनता सरकार ने कोटा लागू किया और इसका श्रेय भी लिया. ऐसे कई मौके कांग्रेस ने गवाए है

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