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रामनगर में राज्याभिषेक रामलीला की भोर की आरती देख लाखों श्रद्धालु निहाल

वाराणसी, 12 अक्टूबर (वेबवार्ता)।

विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में शनिवार को राज्याभिषेक की भोर की आरती देखने के लिए लाखों लीला प्रेमी रामनगर किला रोड स्थित अयोध्या रामलीला मैदान में उमड़ पड़े। चैदह वर्ष के वनवास की अवधि में लंका जीत कर अयोध्या लौटे मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक की लीला और भोर की आरती की अलौकिक छटा देख श्रद्धालु निहाल हो गये। भोर की आरती के समय मशाल की रोशनी में किले से नंगे पांव पूर्व काशी नरेश के उत्तराधिकारी महाराज डॉ.अनंत नारायण सिंह अयोध्या रामलीला मैदान के लिए निकले तो हर-हर महादेव का जयघोष गूंज उठा।

इसके पहले आधी रात के बाद से ही लीला प्रेमी रामनगर भोर की आरती देखने पहुंचने लगे। हजारों श्रद्धालुओं ने तो शुक्रवार की शाम से ही अयोध्या रामलीला मैदान में राज्याभिषेक की लीला देखने के बाद आसपास डेरा डाल दिया। भोर होते-होते आरती की झलक पाने के लिए आस्था का जन समुद्र उमड़ पड़ा। रामनगर चैराहे से दुर्ग होते हुए शास्त्री चैक तक तिल रखने की जगह नहीं बची थी। इस दौरान धक्कामुक्की ठेलमठेल से कई बार असहज स्थिति बनी लेकिन भगवान के दर्शन की आस में श्रद्धालु टस से मस नहीं हुए। लाल महताबी की रोशनी में भगवान की आरती होने के साथ ही रामनगर का कोना-कोना हर-हर महादेव के पारम्परिक गगनभेदी जयकारों से गूंज उठा।

उधर, पूरब दिशा में भगवान भाष्कर की लाली प्रस्फुटित होने वाली थी कि किले के द्वार पर डंका बजने लगा। मशालची मशाल लेकर चल पड़े। उनके पीछे काशिराज नंगे पांव आरती स्थल के लिए सड़क के दोनों किनारों पर खड़ी कतारबद्ध भीड़ का अभिवादन करते निकले। भीड़ के बीच से सुरक्षा घेरे में उनको अयोध्या जी के मैदान पहुंचाया गया। काशिराज के अयोध्या पहुंचने के बाद महताबी रोशनी में राम दरबार की आरती हुई।

अयोध्या से पंचवटी निकले काशिराज: आरती के बाद महाराज अनन्त नारायण सिंह अपनी कार से पंचवटी की ओर रवाना हो गए। इसके बाद राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता समेत पांचों स्वरूपों को सेवकों ने अपने कंधों पर बैठा कर गंगा दर्शन कराया। फिर भगवान के स्वरूप बलुआघाट स्थित धर्मशाला में ले जाए गए।

कथा प्रसंग: मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम के राज्याभिषेक समारोह में गुरु वशिष्ठ, लंका अधिपति विभीषण, किष्किन्धा नरेश महाराज सुग्रीव, युवराज अंगद, महावीर हनुमान समेत अनेक वीर संग बंदर भालूओं और अयोध्या के नागरिक प्रतीक रूप से मौजूद रहे। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा पाकर प्रभु श्री राम सिर झुका कर सभी का अभिवादन करते हुए अयोध्या के राज सिंहासन पर माता सीता के साथ विराजमान हुए। सर्वप्रथम गुरु वशिष्ठ के राजतिलक करने के पश्चात माता कौशल्या दान देती हैं।

इस अवसर पर रामनगर दुर्ग से पैदल चलकर लीला स्थल तक पहुंचे काशी राजपरिवार के डा. अनंत नारायण सिंह भी भूमि पर बैठ कर प्रभु का दर्शन करते हैं। और श्रीराम का तिलक कर उन्हें भेट देते हैं। इसके बाद भगवान वानर सेना को बुलाकर उन्हें अपने-अपने राज्य जाने को कहते हैं। जिस पर सुग्रीव विभीषण जामवन्त नल नील प्रभु श्रीराम से वस्त्र आभूषण की भेंट प्राप्त कर विदा लेते हैं, परंतु अंगद श्रीराम से स्वयं ना जाने के जिद कर बैठते हैं। श्री राम अंगद की प्रेम भरी वाणी संग प्रेम से गले लगा लेते हैं। काफी समझाने के बाद अंगद चले जाते हैं। भगवान श्री राम, मां सीता, भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सहित सिंहासन पर विराजमान होते हैं। भक्त महाबली हनुमान उनके चरणों में बैठकर प्रभु भक्ति में लीन है।