उत्तरप्रदेश में नगर निकाय चुनाव की तैयारियां जोरो शोरों पर है. इसी बीच अलीगढ़ नगर निगम में भी चुनावी घमासान मचा हुआ है. नगर निगम के 90 वार्ड, 2 नगर पालिका और 16 नगर पंचायतों के 342 वार्डों के लिए संभावित आरक्षण तैयार कर शासन को भेज दिया गया है. बतादें कि जिले में एक नगर निगम, दो नगर पालिका व 16 नगर पंचायतों सहित कुल 19 नगरीय निकाय हैं. जिनमें कुल 338 वार्ड हैं. वहीं नगर निगम में 90 वार्ड है.
लेकिन अगर हम यहां विकास की बात करें तो पांच साल पहले नगर निगम में शामिल 16 गांव का विकास अब तक नहीं हुआ है. बावजूद इसके यहां 16 गांव और शामिल कर दिए गए है. ऐसे में बड़ां सवाल है कि क्या गारंटी है कि उन गांव में विकास होगा.
बतादें कि 2017 में शासन ने 19 गांव को शामिल किया था. लेकिन 2020 में 3 गांवों को शासन ने फिर बाहर कर दिया. और 16 गांव ऐसे है जो नगर निगम सीमा में 2017 में शामिल हुए. और इनको 10 वार्डों में भी नगर निगम ने बांट दिया. लेकिन वहां आज भी साफ सफाई, पेयजल, सड़क, बिजली जैसी समस्या खत्म नहीं हुई है. जब पांच साल में इन गांवो में विकास नहीं हो पाया तो और 16 गांव में कैसे विकास होगा.
दरअसल इस बार नगर निगम में 20 वार्ड बढ़ाकर 90 वार्ड कर दिए गए हैं, जबकि पहले 70 वार्ड थे. वहीं सीमा क्षेत्र का विस्तार करते हुए इस बार जिले की कोल विधानसभा और शहर विधानसभा के कई गांवों को शामिल किया गया है.
नगर निगम में मेयर का चुनाव बेशक भाजपा बनाम अन्य हो, मगर कांग्रेस, आप सहित तमाम निर्दल प्रत्याशी ऐसे हैं. जो चुनावी मैदान में जीत के लक्ष्य के साथ आने की तैयारी में हैं. परिणाम का तो पता नहीं, लेकिन यह भाजपा के लिए कठिनाई बनते जरुर दिख रहे हैं. हालांकि दावे तो पिछली बार के मुकाबले इस बार हर किसी के बेहद मजबूत हैं. परिणाम क्या होंगे और इनकी मेहनत किसके लिए लाभदायक होगा, ये आने वाला समय बताएगा.
वहीं अगर पिछले 25 साल के इतिहास की ओर जाएं तो कांग्रेस लगातार चुनाव लड़ रही है. लेकिन हर बार धार्मिक/जातीय ध्रुवीकरण चुनाव में हावी होने से चुनाव भाजपा व अन्य किसी का ही होता है.वर्ष 2017 का परिणाम ऐसा रहा, जिसमें कांग्रेस ने भाजपा को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया. लेकिन इस चुनाव में आम आदमी पार्टी कोई चमत्कार नहीं दिखा पाई, हालांकि भाजपा इनकी रणनीति पर नजर गड़ाए हुए है. वहीं विपक्षी दल भी ज्यादा से ज्यादा निर्दल उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने के लिए प्रयासरत हैं.
हालांकि 2017 के मेयर चुनाव में बसपा ने मेयर पद जीतकर भाजपा के लगातार जीत के रिकार्ड पर ब्रेक लगाया था. लेकिन नगर निगम बोर्ड में बसपा भाजपा के बाद दूसरे स्थान पर ही रही. वहीं कुछ दिन बाद बसपा को तगड़ा झटका देकर 12 बसपा पार्षद पार्टी छोड़कर सपाई हो गए थे. इस तरह सदन में भाजपा के बाद सपा दूसरी सबसे मजबूत पार्टी बनकर रही.
जहां पिछले चुनाव में बसपा ने चार बार से नगर निगम पर काबिज रही भाजपा का किला ढहा दिया था. यानि कि बसपा प्रत्याशी मोहम्मद फुरकान ने भाजपा के डा. राजीव अग्रवाल को 10 हजार 45 वोटों से हराकर मेयर की सीट पर कब्जा जमाया था. अब देखना यह होगा कि इस बार कुर्सी किसके नाम होती है.
-हिमांशी गुप्ता